1. आहिस्ता चल जिंदगी !
आहिस्ता चल रहीं जिंदगी,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है,
रफ़्तार मे तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए,
रूठो को मानना बाकी है,
रोतो को हंसाना बाकी है,
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए,
कुछ जुड़ते-जुड़ते छूट गए,
उन टूटे-छूटे रिश्तों के,
ज़ख्मों को मिटाना बाकी है,
कुछ हसरतें अभी अधूरी है,
कुछ काम भी और जरूरी हैं,
जीवन की उलझ पहेली को,
पूरा सुलझाना बाकी है,
जब सांसो को थम जाना हैं,
फिर क्या खोना क्या पाना है,
पर मन के जिद्दी बच्चे को यह बात बताना बाकी है।
आहिस्ता चल जिंदगी
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है।
– स्वाति कुमारी
2. रजाई से निकलने दे ।
रफ़ी बनकर जमाने में
हज़ारो गीत भर दूंगा
रविंद्रनाथ के नोबल
मयस्सर तुझ को कर दूंगा
जगत रजनीश समझेगा
ह्रदय को कर विकल दूंगा
विवेकानंद से बढ़ कर
सभी को धर्म बल दूंगा
अभी ललकार मत मुझ को
मुझे मत छेड़ धीरज धर
रजाई से निकलते ही
जमाने को बदल दूंगा…
3. विजय
तुम ही वह आदमी हो जो डिंगे हाँका करते थे
कि तुम चोटी पर पहुँचोगे,
किसी दिन !
तुम सिर्फ एक मौका चाहते थे,
यह साबित करने का कि तुममे कितना ज्ञान था
और यह कि तुम कितनी दूर तक जा सकते हो …
हमने एक और साल गुजर लिया है।
कितने नए विचार आपके पास आये ?
आपने कितने बड़े काम किये ?
समय … ने आपको बारह ताजे महीने दिए
आपने उनमे से कितनो का
लाभ लिया और साहस के साथ प्रयास किया
उस काम को करने का जिसमे आप अक्सर असफल होते थे ?
हमें आपका नाम सफल लोगों की सूचि में नहीं मिला।
इसका कारण बतायें !
नहीं, आपके पास अवसर की कमी नहीं थी !
हमेशा की तरह — आप काम करने में असफल रहे।
– हर्बर्ट कॉफ़मैन
4. अपने आप को व्यवस्थित करना
हो सकता है कि आपके साथ कुछ भी गड़बड़ न हो,
जिस तरह से आप जीते है, जिस तरह से आप काम करते है,
परन्तु में साफ़ देख सकता हु, कि मेरे साथ क्या गड़बड़ है।
ऐसा नहीं है कि में आलसी हु
या जान बूझकर काम से जी चुराता हु ;
सब की तरह में भी कड़ी मेहनत करता हु,
और इसके बावजूद मुझसे इतना कम हो पाता है,
सुबह जा चुकी है, दोपहर आ गई है,
इससे पहले कि मै जान पाऊ, रात करीब आ चुकी है,
और मेरे चारो तरफ, अफ़सोस,
काम पड़े हुए है, जो अधूरे है।
काश मै अपने आपको व्यवस्थित कर पाता।
मैंने अक्सर यह महसूस है, कि आदमी ही महत्वपूर्ण नहीं है ;
बल्कि आदमी के पास योजना भी होना चाहिये
आपके साथ हो सकता है कुछ भी गड़बड़ न हो,
परन्तु मेरी मुश्किल यह रही ;
मै ऐसा काम करता हु
जिनसे ज्यादा लाभ नहीं होता, जो महत्वहीन होते है,
हालाँकि वे दिखते सचमुच महत्वपूर्ण है।
और मुझसे ज्यादातर काम छूट जाते है।
मैं इसको थोड़ा सा करता हूँ, उसको थोड़ा सा करता हूँ,
परंतु मैं अपने कामों को पूरा नहीं कर पाता।
सबकी तरह मैं भी कड़ी मेहनत करता हूँ,
और फिर भी, मुझसे इतना कम हो पाता हैं,
मै इतना कुछ कर सकता हूँ कि आप हैरान रह जाएँ,
बशर्ते कि मैं अपने आपको सिर्फ व्यवस्थित कर लूँ !
– डगलस मैलॉक
विचारो का सटीक ढंग !
मानव जब पैदा होता हैं, तो नरम और सुनम्य होता हैं;
जब मरता है तो कड़ा और सख्त हो जाता है.
पोधे कोमल और लचीले पैदा होते हैं;
जब मरते हैं तो भुरभुरे और सूखे हो जाते हैं.
इसलिए जो भी कड़ा हैं या लचीला नहीं हैं,
वह मृत्यु का अनुयायी हैं
जो भी नरम हैं और झुकने वाला हैं,
वह जीवन का अनुयायी हैं.
कड़ा और सख्त टूट जाता हैं.
नरम और सुनम्य चलता रहता हैं.
-लाओ जू